Sciatica Pain

19
Oct

Sciatica Pain

सायटिका नर्व मनुष्य की रीढ़ की हड्डी से शुरू होकर कूल्हो और नितंबों के माध्यम से चलती हुई दोनों पैरों के नीचे की तरफ एक शाखा में जाती है। साइटिका हमारे शरीर की सबसे लंबी और महत्वपूर्ण तंत्रिकाओं में से एक होती है। इस तंत्रिका में कोई खराबी होने पर हमारे पैरों को नियंत्रित करने और महसूस करने की क्षमता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। जब इसमें कोई परेशानी होती है तब साइटिका  दर्द यानी कटिस्नायुशूल का अनुभव होता है।

साइटिका का दर्द हमारे नितंबों, पैरों और पीठ में होता है और इसकी तीव्रता काफी अधिक हो सकती है। साथ ही इन अंगों में सुन्नता और कमजोरी भी महसूस होती है। यह दर्द हमारी सायटिक तंत्रिका में चोट या इसे प्रभावित करने वाले शरीर के किसी दूसरे हिस्से जैसे की रीढ़ की हड्डी में चोट की वजह से हो सकती है। साइटिका की समस्या होने की संभावना 30 से 50 साल की उम्र में अधिक होती है।

साइटिका के कारण - 

स्पाइनल स्टेनोसिस - स्पाइनल स्टेनोसिस में हमारी रीढ़ की हड्डी कि निचली नलिका का असामान्य रूप से संकुचन हो जाता है। यह संकुचन हमारी रीढ़ की हड्डी और सायटिक तंत्रिका की जड़ों पर दबाव डालना शुरू कर देता है जिसकी वजह से समस्या होने लगती है।

हर्नियेटेड डिस्क - जब हमारी वर्टेब्रा में नूक्लीयस पलपोसुस  अलग हो जाती है। Nucleus pulposus  एक गाड़े  पदार्थ से भरा हुआ होता है ताकि जोड़ों को चारों ओर घूमते समय लचीलापन और गद्दी नुमा एहसास हो सके। हर्नियेटेड डिस्क जिससे कि स्लिप डिस्क भी कहते हैं तब होती है जब कार्टिलेज की पहली परत हट जाती है,  अंदर के पदार्थ सायटिक तंत्रिका में दबाव  कर देते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप निचले अंग में दर्द और सुन्नता होने लगती है। एक रिसर्च में यह अनुमान लगाया गया है कि प्रत्येक 50 व्यक्ति में से एक व्यक्ति को अपने जीवन काल में हर्नियाटेड डिस्क का अनुभव जरूर होता है।

पीरीफोर्मिस सिंड्रोम - पीरीफोर्मिस सिंड्रोम एक दुर्लभ न्यूरोमस्क्यूलर  विकार होता है। जिसमें साइटिका के कारण हमारी पीरीफोर्मिस मांसपेशियां अनायास ही संकुचित हो जाती है या फिर कड़क हो जाती है। पीरीफोर्मिस मांसपेशी वह मांसपेशी होती है जो कि हमारी रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से को जांघों से जोड़ती है। जब यह कड़क हो जाती है तो सायटिक तंत्रिका पर दबाव पड़ने लगता है जिससे साइटिका हो जाता है। यदि आप लंबे समय तक बैठे रहते हैं, गिर जाते हैं या किसी दुर्घटना के शिकार होते हैं तब यह सिंड्रोम गंभीर रूप ले सकता है।

स्पॉन्डलाइस्थेसिस - डिजेनेरेटिव डिस्क विकार संबंधित स्थितियों में से एक है। स्पॉन्डलाइस्थेसिस जब रीढ़ की हड्डी या कशेरुक एक दूसरे से आगे बढ़ जाती हैं तो खिसकी हुई  रीढ़ की हड्डी सायटिक तंत्रिका को प्रेरित करने लगती है ऐसे में यह समस्या सामने आती है।

साइटिका के लक्षण -

साइटिका के लक्षण बहुत अलग प्रकार के होते हैं यदि हम को अपने पीठ के निचले हिस्से से अपने नितंब क्षेत्र तक और निचले अंगों में बहने वाले दर्द का सामना करना पड़ रहा है तब वह आमतौर पर साइटिका ही होता है।  साइटिका हमारे सायटिक तंत्रिका को नुकसान या चोट का परिणाम होता है इसलिए तंत्रिका की क्षति होने पर लक्षण के तौर पर दर्द ही सामने आता है इसके अन्य लक्षण इस प्रकार है -

    •    पैरों में सुन्नता या कमजोरी का अनुभव होना जो कि आमतौर पर सायटिक तंत्रिका पर हमें महसूस होता है ज्यादा गंभीर होने पर पैरों को हिलाना डुलाना भी मुमकिन नहीं हो पाता है।
    •    सुई चुभने जैसा दर्द होता है साथ ही पैरों की उंगलियों और पैरों में दर्द ना झुनझुनी भी होती है।
    •    कभी-कभी यह दर्द इतना तीव्र होता है कि हिल पाना भी मुश्किल हो जाता है।
    •    मूत्राशय या आप को नियंत्रित करने में अक्षमता महसूस होती है। नित्य कर्म अनियंत्रित हो जाते हैं। यह[cauda equina   सिंड्रोम का दुर्लभ लक्षण होता है जिसके बाद तुरंत पेन फिजीशियन ,neuro physician या neuro surgeon  को दिखाना चाहिए।

साइटिका का उपचार - 

    •    सूजन विरोधी दवाएं[anti inflammatory]
    •    नारकोटिक दवाएं[नशे या नींद की दवा]
    •    ट्राईसाईकलिक एंटीडिप्रेसेंट्स।
    •    उद्वेग विरोधी दवाएं[acidity की दवा]
    •    स्नायु शिथिलता की दवाई[nervous system}
    •    स्टेरॉइड इंजेक्शन[इंटर मस्क्युलर]
    •    एपिडूरल इंजेक्शन 
    •    रूट ब्लाक या नर्व ब्लाक 
    •    intradiscal techniques 
    •    percutaneous nucleoplasty 

JPRC न्यूरो स्पाइन क्लिनिक पर उपलब्ध है साइटिका से जुड़ी समस्याओं के लिए नई तकनीकी सुविधाएं - 

    •    JPRC न्यूरो स्पाइन क्लिनिक पर इस बीमारी के इलाज के लिए सभी नई तकनीकें उपलब्ध हैं जो कि बहुत ही प्रभावकारी होती हैं।
    •    आज के नए न्यूरोसाइंस में रेडियो फ्रिकवेंसी न्यूरोमोड्यूलेशन मिनिमल इनवेसिव टेक्निक का एक मॉडर्न तरीका है।
    •    interventional technique केवल पेन फ़िज़िशन या neuro surgeon के द्वारा की जाती है 
    •    इस तकनीक का शरीर के किसी भी दूसरे अंग पर दुष्प्रभाव नहीं होता।
    •    यह प्रक्रिया आउटपेशेंट या fluroscopic suite  आधारित की जाती है।
    •    इस तकनीक के द्वारा इलाज लेने पर मरीज को बहुत ज्यादा दिनों तक आराम नहीं करना होता है बल्कि बहुत जल्दी रिकवरी हो जाती है।
    •    इस तकनीक का उपयोग करने के बाद दर्द तुरंत ही खत्म हो जाता है।

JPRC न्यूरो स्पाइन क्लीनिक जयपुर, भारत में पहली बार हमारे इंटरवेंशनल दर्द चिकित्सक और न्यूरोसर्जन द्वारा सभी प्रकार की नसों से सम्बंधित समस्या का  का रेडियो फ्रीक्वेंसी और न्यूरोमॉड्यूलेशन से इलाज किया गया है।

हम पिछले 11 सालों से हमारे मरीजों को उनके दर्द से राहत दिला रहे हैं। हमारे यहां से इलाज और राहत पाकर सभी मरीज पूरी तरह से स्वस्थ और संतुष् हो कर अपने  घर वापस लौटते हैं।