Plantar Fasciitis Description in Hindi

13
Aug

Plantar Fasciitis Description in Hindi

प्लांटर फैसीआईटिस हमारी एड़ी में होने वाले दर्द का मुख्य कारण होता है। हमारे पैर के निचले ऐसे में उत्तक का एक मोटा बैंड होता है जिसे प्लांट फेसियस कहते हैं। यह उत्तक एड़ी और पंजों को आपस में जोड़ता है। जब इस उत्तक में सूजन होने लगती है जिसके कारण एड़ी में दर्द होने लगता है तब यह दर्द प्लांट फैसीआईटिस की वजह से होता है।

 

प्लांटर फैसीआईटिस के कारण क्या है?

प्लांटर फैसीआईटिस का मुख्य काम हमारे पैरों को लगने वाले झटको को झेलना और पैरों को सहारा देने का होता है। इस परेशानी के होने के मुख्य कारण इस प्रकार है -

  • डैमेज टिशू - जब इसके टिशू पर दबाव बढ़ने लगता है या फिर यह चोटिल हो जाते हैं तब यह टिशू फट जाते हैं जिसके कारण इन में दर्द और सूजन होने लगती है।
  • वजन -  जिनका वजन बहुत अधिक होता है उन लोगों में भी यह समस्या देखी जाती है। अधिक वजन के कारण पैरों पर अधिक दबाव पड़ता है जिससे कि पैरों के टिशू में परेशानी होने लगती है।
  • चोट लगना - किसी भी कारण से पैरों या एड़ी में चोट लगने की वजह से भी दर्द और सूजन हो जाती है जोकि प्लांटर फैसीआईटिस का कारण होता है।
  • झटका लगना - पैर या एड़ी में अचानक से झटका लगने की वजह से भी यह परेशानी हो सकती है।
  • दौड़ना - जो लोग रनिंग करते हैं उन लोगों में भी यह समस्या अक्सर ही देखी जाती है लगातार दौड़ने की वजह से उनके पैरों पर दबाव पड़ता है जिसकी वजह से दर्द की समस्या होती है।

 

प्लांटर फैसीआईटिस के लक्षण क्या है?

इस बीमारी के लक्षण बहुत ही आम दिखाई पड़ते हैं। गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं। इसके लक्षण इस प्रकार हैं-

  • दर्द - एड़ी में दर्द रहना इस बीमारी का सबसे आम लक्षण है। यह दर्द सुबह उठने से लेकर चलने फिरने तक बना रहता है और धीरे-धीरे कम हो जाता है। अधिक समय तक बैठे रहने के बाद अचानक उठकर चलने पर भी दर्द का अनुभव होता है।
  • सूजन - एड़ी या पैर में सूजन होना साथ ही इसका दर्द कभी-कभी एड़ी से लेकर उंगली तक पहुंच जाता है।
  • जलन - इस बीमारी में कभी-कभी दर्द के साथ मरीज को जलन भी महसूस होती है। एड़ी के साथ-साथ यह पैर के निचले हिस्से में भी हो सकती है।
  • जकड़न - पैर के तलवे या एड़ी के हिस्से पर जकड़न या कड़ापन महसूस होना।
  • खड़े रहना - अधिक समय तक खड़े रहने पर पैरों या एड़ी में दर्द महसूस होने लगता है।

 

प्लांटर फैसीआईटिस के उपचार क्या है?

इस बीमारी का सबसे मुख्य इलाज यही है कि पैरों पर कम से कम दबाव बनाया जाए और सूजन कम करने के लिए बर्फ का इस्तेमाल किया जाए। दर्द होने पर दर्द निवारक दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है साथ ही आपके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले जूतों को भी बदल कर दर्द से राहत ली जा सकती है।

 

JPRC स्पाइन सेंटर पर प्लांटर फैसीआईटिस का इलाज कैसे होता है।

हमारे सेंटर पर इंटरवेंशनल दर्द चिकित्सक  [interventional pain physician] द्वारा मरीज की पूरी हिस्ट्री और शारीरिक परीक्षण के अलावा ऐसे विशिष्ट परीक्षण भी उपलब्ध है जो प्लांटर फैसीआईटिस की जांच करते हैं। एड़ी में दर्द के कारण का पता लगाने के लिए एक्स-रे ,सोनोग्राफ़ी और एम आर आई जैसे इमेजिंग टेस्ट की सलाह दी जाती है। इसके अलावा भी हमारे सेंटर पर निम्न प्रकार के उपचार उपलब्ध है -

  • नॉनस्टेरॉयडल एंटी इन्फ्लेमेटरी ड्रग्स - यह ड्रग मरीज के दर्द में मदद करती है और सूजन को कम करती है इसके लिए डॉक्टर कई हफ्तों के लिए 1 दिन में कई खुराक लिख सकते हैं।
  • स्टेरॉइड इंजेक्शन - यदि मरीज का दर्द बहुत गंभीर है और नॉन स्टेरॉइड इन्फ्लेमेटरी ड्रग भी असर नहीं कर रहा है तब डॉक्टर आपको स्टेरॉयड इंजेक्शन लेने की सलाह देते हैं।
  • रेडियो फ्रीक्वेंसी (RADIO FREQUENCY) - इस तकनीक  के तहत एक विशेष प्रकार के इलेक्ट्रोड द्वारा सम्बंधित  जगह  में बिना ऑपरेशन या चीरफाड़  से आपके पैर में दर्द का कारण वाली muscles,लिग़मेंट्स  या  नस का दर्द स्थायी रूप से ख़त्म कर दिया जाता है
  • प्रोलोथेरपी - इस तकनीक में एक विशेष प्रकार के इंजेक्शन को लगाया जाता है,जिसमें प्रोलिफेरंट्स का प्रयोग किया जाता है,साथ ही कुछ सावधानी रखने की सलाह दे जाती है!

अक्सर देखा गया है मरीज़ों द्वारा कई प्रकार की एक्सर्सायज़,चप्पल, शूज़,विभिन्न थेरपी का इस्तेमाल करने की सलाह दे जाती है,यदि इंसके बावजूद मरीज़ को दर्द में  आराम नहीं मिलता है तौ सर्जरी की सलाह दे जाती है,ज़्यादातर ग्रहणी,कामकाजी महिलायें,लेम समय तक खड़े रह कर काम करने वाले लोग इस समस्या से प्रभावित रहते है!यदि समय रहते इसका उचित इलाज करवा लिया जाए तौ,आप दर्द की समस्या से निजात पा सकते है!

 

JPRC स्पाइन सेंटर पर प्लांटर फैसीआईटिस के इलाज के लिए नई तकनीकी उपलब्ध है। जिससे कि मरीज को दर्द में राहत मिलता है। हमारे सेंटर पर डॉक्टरों की टीम के द्वारा मरीज का पूरा परीक्षण किया जाता है उसके बाद मिनिमली इनवेसिव तकनीक द्वारा इलाज किया जाता है।